Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 68: जितेंद्रियता (Mokshmala)
श्रीमद् जी लिखते है… जब तक जीभ स्वादिष्ट भोजन चाहती है, जब तक नासिका सुगंध ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 57: वैराग्य धर्म का स्वरूप है (Mokshmala)
श्रीमद् जी लिखते है… एक वस्त्र खून से रंग गया। उसे यदि खून से धोयें ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 52: ज्ञानियों ने वैराग्य का बोध क्यों दिया? (Mokshmala)
श्रीमद् जी लिखते है… संसार के स्वरूप के संबंध में पहले कुछ कहा गया है ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 50: प्रमाद (Mokshmala)
श्रीमद् जी लिखते है… धर्म का अनादर, उन्माद, आलस्य और कषाय ये सब प्रमाद के ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 43: अनुपम क्षमा (Mokshmala)
श्रीमद् जी लिखते है… क्षमा अंतर्शत्रु को जीतने का खड्ग है। पवित्र आचार की रक्षा ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 31: प्रत्याख्यान (Mokshmala)
श्रीमद् जी लिखते है… पच्चक्खान शब्द बारम्बार तुम्हारे सुनने में आया है। इसका मूल शब्द ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 27: यत्ना (प्रयत्न) (Mokshmala)
जैसे विवेक धर्म का मूल तत्त्व है, वैसे ही यत्ना धर्म का उपतत्त्व है। विवेक ...
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शिक्षापाठ 25: परिग्रह को मर्यादित करना (Mokshmala)
जिस प्राणी को परिग्रह की मर्यादा नहीं है, वह प्राणी सुखी नहीं है। उसे जो ...
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शिक्षापाठ 24: सत्संग (Mokshmala)
सत्संग सर्व सुख का मूल है। ‘सत्संग मिला’ कि उसके प्रभाव से वांछित सिद्धि हो ...
Shrimad Rajchandra
शिक्षापाठ 21: बारह भावना (Mokshmala)
वैराग्य की, और ऐसे आत्महितैषी, विषयों की सुदृढ़ता के लिए तत्त्वज्ञानी बारह भावनाओं का चिंतन ...