
श्रीमद् जी लिखते है…
पच्चक्खान शब्द बारम्बार तुम्हारे सुनने में आया है। इसका मूल शब्द ‘प्रत्याख्यान’ है और यह अमुक वस्तु की ओर चित्त न जाने देने का जो नियम करना, उसके लिये प्रयुक्त होता है। प्रत्याख्यान करने का हेतु अति उत्तम तथा सूक्ष्म है। प्रत्याख्यान न करने से चाहे किसी वस्तु को न खाओ अथवा उसका भोग न करो तो भी उससे संवर नहीं होता, क्योंकि तत्त्वरूप से इच्छा का निरोध नहीं किया है। रात में हम भोजन न करते हों; परंतु उसका यदि प्रत्याख्यान रूप से नियम न किया हो तो वह फल नहीं देता, क्योंकि अपनी इच्छा के द्वार खुले रहते हैं। जैसे घर का द्वार खुला हो और श्र्वान आदि प्राणी या मनुष्य भीतर चले आते हैं, वैसे ही इच्छा के द्वार खुले हों तो उनमें कर्म प्रवेश करते हैं। अर्थात् उस ओर अपने विचार यथेच्छ रूप से जाते हैं; यह कर्मबंधन का कारण है। और यदि प्रत्याख्यान हो तो फिर उस ओर दृष्टि करने की इच्छा नहीं होती। जैसे हम जानते हैं कि पीठ के मध्य भाग को हम देख नहीं सकते, इसलिये उस ओर हम दृष्टि भी नहीं करते; वैसे ही प्रत्याख्यान करने से अमुक वस्तु खायी या भोगी नहीं जा सकती; इसलिये उस ओर अपना ध्यान स्वाभाविक रूप से नहीं जाता। यह कर्मों को रोकने के लिये बीच में दुर्गरूप हो जाता है। प्रत्याख्यान करने के बाद विस्मृति आदि के कारण कोई दोष लग जाये तो उसके निवारण के लिये महात्माओं ने प्रायश्चित भी बताये हैं।
प्रत्याख्यान से एक दूसरा भी बड़ा लाभ है; वह यह कि अमुक वस्तुओं में ही हमारा ध्यान रहता है, बाकी सब वस्तुओं का त्याग हो जाता है। जिस-जिस वस्तु का त्याग किया है, उस-उस वस्तु के संबंध में फिर विशेष विचार, उसका ग्रहण करना, रखना अथवा ऐसी कोई उपाधि नहीं रहती। इससे मन बहुत विशालता को पाकर नियम रूपी सड़क पर चला जाता है। अश्व यदि लगाम में आ जाता है, तो फिर चाहे जैसा प्रबल होने पर भी उसे इच्छित रास्ते से ले जाया जाता है; वैसे ही मन, इस नियम रूपी लगाम में आने के बाद, चाहे जैसी शुभ राह में ले जाया जाता है; और उसमें बारम्बार पर्यटन कराने से वह एकाग्र, विचारशील और विवेकी हो जाता है। मन का आनंद शरीर को भी नीरोग बनाता है। और अभक्ष्य, अनंतकाय, परस्त्री आदि का नियम करने से भी शरीर नीरोग रह सकता है। मादक पदार्थ मन को उलटे रास्ते पर ले जाते हैं, परंतु प्रत्याख्यान से मन वहाँ जाता हुआ रुकता है; इससे वह विमल होता है।
प्रत्याख्यान यह कैसी उत्तम नियम पालने की प्रतिज्ञा है, यह बात इस परसे (तरह) तुम समझे होंगे। विशेष सद्गुरु के मुख से और शास्त्र अवलोकन से समझने का मैं बोध करता हूँ।
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