Shrimad Rajchandra

शिक्षापाठ 68: जितेंद्रियता (Mokshmala)

Mokshmala 73

श्रीमद् जी लिखते है…

जब तक जीभ स्वादिष्ट भोजन चाहती है, जब तक नासिका सुगंध चाहती है, जब तक कान वारांगना के गायन और वाद्य चाहते हैं, जब तक आँखें वन-उपवन देखने का लक्ष रखती हैं, जब तक त्वचा सुगंधी लेपन चाहती है, तब तक यह मनुष्य नीरागी, निर्ग्रंथ, निष्परिग्रही, निरारंभी और ब्रह्मचारी नहीं हो सकता। मन को वश करना यह सर्वोत्तम है। इससे सभी इंद्रियाँ वश की जा सकती हैं। मन को जीतना बहुत-बहुत दुष्कर है। एक समय में असंख्यात योजन चलने वाला अश्व यह मन है। इसे थकाना बहुत दुष्कर है। इसकी गति चपल और पकड़ में न आ सकने वाली है। महाज्ञानियों ने ज्ञान रूपी लगाम से इसे स्तंभित (स्थिर) करके सब पर विजय प्राप्त की है।

उत्तराध्ययन सूत्र में, नमिराज महर्षि ने शकेन्द्र से ऐसा कहा कि दस लाख सुभटों को जीतने वाले कईं पड़े हैं; परंतु स्व-आत्मा को जीतने वाले बहुत दुर्लभ हैं; और वे दस लाख सुभटों को जीतने वालों की अपेक्षा अति उत्तम हैं।

मन ही सर्व-उपाधि की जन्मदात्री भूमिका है। मन ही बंध और मोक्ष का कारण है। मन ही सर्व संसार का  मोहिनी रूप है। यह वश हो जाने पर आत्म-स्वरूप को पाना लेशमात्र दुष्कर नहीं है।

मन से इंद्रियों की लोलुपता है। भोजन, वाद्य, सुगंध, स्त्री का निरीक्षण, सुंदर विलेपन यह सब मन ही माँगता है। इस मोहिनी के कारण यह धर्म को याद नहीं करने देता। याद आने के बाद सावधान नहीं होने देता। सावधान होने के बाद पतित करने में प्रवृत्त होता है, अर्थात् लग जाता है। इसमें सफल नहीं होता, तो सावधानी में कुछ न्यूनता पहुँचाता है। जो इस न्यूनता को भी न पाकर, अडिग रह कर मन को जीतते हैं, वे सर्व सिद्धि को प्राप्त करते हैं।

मन अकस्मात्, किसी से ही जीता जा सकता है; नहीं तो अभ्यास करके ही जीता जाता है। यह अभ्यास निर्ग्रंथता में बहुत हो सकता है। फिर भी गृहस्थ-आश्रम में हम सामान्य परिचय करना चाहें, तो उसका मुख्य मार्ग यह है कि यह मन जो दुरिच्छा करे, उसे भूल जायें, वैसा न करें। संक्षेप में हम इससे प्रेरित न हों, परंतु हम इसे प्रेरित करें और वह भी मोक्ष-मार्ग में। जितेंद्रियता के बिना सर्व प्रकार की उपाधि खड़ी ही रहती है। त्यागने पर भी न त्यागने जैसा हो जाता है, लोक-लज्जा से उसे निभाना पड़ता है। इसलिए अभ्यास करके भी मन को जीतकर स्वाधीनता में लाकर अवश्य आत्महित करना चाहिेए।


श्रीमद राजचन्द्र के मोक्षमाला हर रविवार

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