एक शाम, जब सूर्य और चंद्रमा दोनों आकाश में दिखाई दे रहे थे, एक जिज्ञासु शिष्य ने अपने गुरु से एक ऐसे विषय पर कुछ सवाल पूछे, जो ब्रह्मांड के सबसे गहरे रहस्यों से भी अधिक रहस्यमय लग रहा था।
शिष्य: यदि चंद्रमा सौंदर्य है, और सूर्य जीवन है, तो प्रेम क्या है?
गुरु: प्रेम श्वास है।
शिष्य: यदि चंद्रमा की सुंदरता रात के अंधेरे में बढ़ती है, और सूर्य की सुंदरता भोर और साँझ के समय बढ़ती है, तो प्रेम की सुंदरता कैसे बढ़ती है?
गुरु: प्रेम की सुंदरता तब बढ़ती है जब इसे भक्ति, समर्पण, श्रद्धा और प्रार्थना चार रत्नों से सजाया जाता है।
शिष्य: यदि चंद्रमा का स्वभाव है घटना और बढ़ना, और सूर्य का स्वभाव है जलना और प्रकाश देना, तो प्रेम का स्वभाव क्या है?
गुरु: प्रेम का स्वभाव है फैलना और विस्तृत होना।
शिष्य: यदि चंद्रमा की पूजा ईद और करवा चौथ जैसे कुछ त्योहारों में की जाती है, और सूर्य की पूजा प्रति दिन प्रात: काल में की जाती है, तो प्रेम का पूजा दिवस और अनुष्ठान क्या है?
गुरु: प्रेम की पूजा का प्रथम दिवस वह दिन है जब प्रेम का अनुभव एक गुरु के रूप में होता है। उस दिन के बाद का प्रत्येक दिन प्रेम की पूजा का दिवस ही है। और अनुष्ठान है उस प्रेम की अभिव्यक्ति अनंत काल तक करते रहना।
शिष्य: यदि चंद्रमा पर चलने वाला पहला मनुष्य नील आर्मस्ट्रांग था, और सूर्य को छूने वाला पहला मानव आविष्कार पार्कर सोलर प्रोब था, तो प्रेम का अनुभव करने वाला पहला व्यक्ति कौन था?
गुरु: प्रेम को अनुभव करने वाला कोई व्यक्ति नहीं है, क्योंकि जो प्रेम पाता है वह एक व्यक्ति नहीं रहता, बल्कि पूरे अस्तित्व के साथ संयुक्त हो जाता है!
This truly is the ultimate! Aho upkaar aho upkaar !
यह वास्तव में एक गहरी और विचारशील विचारधारा है। इस प्रकार के प्रश्न और उत्तर से, प्रेम की गहराई और उसके स्वरूप का अद्भुत विवेचन किया गया है। यहाँ प्रेम के स्वरूप को समझने में मदद मिल रही है, जैसे कि यह कैसे फैलता है और कैसे विकसित होता है।
धन्यवाद प्रभु प्रेम को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से समझाने के लिए।
गुरु की कृपा से ही प्रेम व्याख्या संभव है। गुरु जी के प्रति भक्ति, समर्पण और श्रद्धा ही प्रेम है। प्रेम व्यक्त समष्टि के प्रति होना चाहिए। इतने सुन्दर प्रश्न और उत्तर के लिए धन्यवाद श्री गुरु ।
आज के पहले कभी प्रेम की अभिव्यक्ती नही सुनी प्रभु। नतमस्तक हूँ!