Prem Kathan

प्रेम को प्रेम ही रहने दो – कोई नाम न दो!

पुराने समय में एक हिन्दी फ़िल्म ‘खामोशी’ आई थी जिस में एक गीत था जिसके बोल कुछ इस प्रकार से थे – प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो। जब यह गीत सुना तब यह समझ नहीं आता था कि प्रेम कोई कोई नाम क्यों नहीं दिया जाना चाहिए। परंतु अब इस प्रेम समाधि के अन्तर्गत यह शब्द अपनी वास्तविकता और पहचान को प्राप्त कर रहे हैं। 

हम किसी से प्रेम करते हैं तो वहाँ तुरंत ही एक संबंध बन जाता है और उस संबंध को हम कोई-न-कोई नाम दे देते हैं। जैसे भाई-बहन, माँ-पुत्र, पति-पत्नी, मित्र, व्यापारी, गुरु-शिष्य इत्यादि। लेकिन जैसे ही प्रेम को संबंध में बाँधा जाता है वैसे ही प्रेम अपनी मुक्तता व मौलिकता खो बैठता है और अपेक्षा व अहंभाव प्रमुख हो जाता है। माँ का संतान के प्रति का प्रेम यदि उन्हें निर्भर बना रहा है तो मुक्ति की मंज़िल अभी दूर है। गुरु के प्रति का शिष्य का प्रेम यदि उसे गुरु की आसक्ति में बाँध रहा है तो गुरु का संयोग अभी योग का मार्ग नहीं बना है। 

क्या करें? प्रेम को प्रेम ही रहने दें और कोई नाम न दें – तुम्हारे अपने साथ के संबंध को तुमने क्या नाम दिया है? कुछ भी नहीं। ठीक ऐसे ही जब हम गुरु के साथ के संबंध को कोई भी नाम नहीं देते हैं तो वह हमारा ही हिस्सा बन जाते हैं और जब वो हमारा ही हिस्सा है तो अपेक्षा और अहंभाव भी स्वयं की मुक्ति और मौलिकता की ही होगी..!

क्या तुम अपने ही भाई, बहन, माँ, बाप, गुरु या शिष्य होते हो? नहीं। तुम्हारा जैसे तुम से संबंध नहीं बनाया जा सकता और तभी वह तुम्हारे विकास का कारण बनता है ठीक वैसे ही जीवन के इन विशेष संयोगों को संबंध की बेड़ियों में मत बाँधो, उन से बेशर्त प्रेम करो लेकिन उस प्रेम को कोई नाम न दो!


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3 Comments

  1. एकदम सही। नाम के साथ अधिकार और कर्तव्य बांध देते हैं, भावनाओ की आज़ादी खत्म हो जाती है।
    धन्यवाद श्री गुरू।
    सादर प्रणाम।

  2. प्रेम तो ऐसी खूबसूरती है जिसका सत्य में कोई नाम ही नहीं है! कहीं जाते हुए ,रास्ते में चलते-चलते हमें अचानक ही किसी को देख कर अपने भाव बदलते दिखते हैं और बस उसके लिए भीतर से मीठा सा एहसास होता है कि उसकी ओर खींचे जाते हैं , चाहे वो कोई पक्षी, जीव या मनुष्य हो, या फिर कोई भी ! बस भीतर में एक आत्मीयता व् अपनेपन का एहसास होता है, बिना किसी जान पहचान के, बिना कभी मिले! महसूस तो भीतर से होता है वो एहसास और शब्दों में प्रेम ही बोला दिया जाता है!
    शुक्रिया श्री गुरु!

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