- एक भेद से नियम ही इस जगत का प्रवर्तक है।
- जो मनुष्य सत्पुरुषों के चरित्र-रहस्य को पाता है वह मनुष्य परमेश्वर हो जाता है।
- चंचल चित्त ही सर्व विषम दु:खों का मूल है।
- बहुतों का मिलाप और थोड़ों के साथ अति समागम ये दोनों समान दु:खदायक हैं।
- समस्वभावी का मिलना इसे ज्ञानी एकांत कहते हैं।
- इंद्रियाँ तुम्हें जीतें और तुम सुख मानो इसकी अपेक्षा उन्हें जीतने में ही तुम सुख, आनंद और परमपद प्राप्त करोगे।
- राग के बिना संसार नहीं और संसार के बिना राग नहीं।
- युवावस्था का सर्वसंग परित्याग परमपद को देता है।
- उस वस्तु के विचार में लगो कि जो वस्तु अतीन्द्रिय-स्वरूप है।
- गुणी के गुण में अनुरक्त होओ।
Shrimad Rajchandra