Shrimad Rajchandra

शिक्षापाठ 101: स्मृति में रखने योग्य महावाक्य (Mokshmala)

Mokshmala 101
श्रीमद् जी लिखते है…
  1. एक भेद से नियम ही इस जगत का प्रवर्तक है।
  2. जो मनुष्य सत्पुरुषों के चरित्र-रहस्य को पाता है वह मनुष्य परमेश्वर हो जाता है।
  3. चंचल चित्त ही सर्व विषम दु:खों का मूल है।
  4. बहुतों का मिलाप और थोड़ों के साथ अति समागम ये दोनों समान दु:खदायक हैं।
  5. समस्वभावी का मिलना इसे ज्ञानी एकांत कहते हैं।
  6. इंद्रियाँ तुम्हें जीतें और तुम सुख मानो इसकी अपेक्षा उन्हें जीतने में ही तुम सुख, आनंद और परमपद प्राप्त करोगे।
  7. राग के बिना संसार नहीं और संसार के बिना राग नहीं।
  8. युवावस्था का सर्वसंग परित्याग परमपद को देता है।
  9. उस वस्तु के विचार में लगो कि जो वस्तु अतीन्द्रिय-स्वरूप है।
  10. गुणी के गुण में अनुरक्त होओ।

 

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