Shrimad Rajchandra

शिक्षापाठ 100: मनोनिग्रह के विघ्न (Mokshmala)

Mokshmala

श्रीमद् जी लिखते है…

बारम्बार जो बोध करने में आया है, उसमें से मुख्य तात्पर्य यह निकलता है कि आत्मा को तारो और तारने के लिये तत्त्वज्ञान का प्रकाश करो तथा सत् शील का सेवन करो। इसे प्राप्त करने के लिये जो-जो मार्ग बतलाये हैं, वे सब मार्ग मनोनिग्रह के अधीन हैं। मनोनिग्रह के लिये लक्ष्य की विशालता करना यथोचित है। इसमें निम्नलिखित दोष विघ्न रूप हैं:-

1.      आलस्य10. आत्मप्रशंसा
2.      अनियमित निद्रा11. तुच्छ वस्तु से आनंद
3.      विशेष आहार12. रसगारव लुब्धता (रस में आसक्ति)
4.      उन्माद प्रकृति13. अति भोग
5.      माया प्रपंच14. दूसरे का अनिष्ट चाहना
6.      अनियमित काम15. निष्कारण कमाना
7.      अकरणीय (न करने योग्य) विलास16. बहुतों का स्नेह
8.      मान17. अयोग्य स्थान में जाना
9.      मर्यादा से अधिक काम18. एक भी उत्तम नियम को सिद्ध नहीं करना

अष्टादश पापस्थानक का क्षय तब तक नहीं होगा जब तक इन अष्टादश विघ्नों से मन का संबंध है। ये अष्टादश दोष नष्ट होने से मनोनिग्रह और अभीष्ट सिद्धि हो सकती है। जब तक ये दोष मन से निकटता रखते हैं तब तक कोई भी मनुष्य आत्म-सार्थकता नहीं कर सकता। अति भोग के स्थान पर सामान्य भोग नहीं परंतु जिसने सर्वथा भोग-त्याग व्रत धारण किया है तथा जिसके ह्रदय में इनमें से एक भी दोष का मूल नहीं है वह सत्पुरुष बड़भागी है।


श्रीमद राजचन्द्र के मोक्षमाला हर रविवार

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1 Comment

  1. Sri gurudev charno mei koti koti dhanywad

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