किसी से आत्मीयता होने पर संदेह अस्तित्व में नहीं रह सकता, क्योंकि संदेह को पनपने के लिए दूरी की आवश्यकता होती है। आप जिस किसी व्यक्ति के करीब होते हैं, जिसे आप अपना मानते हैं, उस पर कभी संदेह नहीं कर सकते। जिस क्षण आप किसी पर संदेह करते हैं, तो समझ लीजिए वे अब आपके करीब नहीं रहे, आप दोनों के बीच एक दूरी बन चुकी है। और इसी दूरी में भय, अनिश्चितता, पीड़ा जैसी नकारात्मक भावनाएँ पैदा होने लगती हैं।
जिस तरह दूसरों पर संदेह करना आपको उनसे दूर ले जाता है, वैसे ही स्वयं पर शंका करना हमारे स्वयं के साथ के संबंध को कमजोर करता है। स्मरण रहे, स्वयं पर संदेह करने से जब मनोबल टूटता है, तो कोई दूसरा उसे जोड़ नहीं सकता। और जब आप आत्म-विश्वास से उस मनोबल को जोड़ते हैं, तो अब कोई भी उसे तोड़ नहीं सकता। यदि दूसरों पर संदेह करने का मतलब है उनके साथ आत्मीयता का अभाव, तो खुद पर संदेह करने का मतलब है आत्म-प्रेम की कमी। क्योंकि शंका और प्रेम कभी एक साथ नहीं रह सकते!
असल में जो करीबी होते हैं, उनपर संदेह नहीं करना चाहिए, जब कर लिया तो दूरिया बन्नी ही हैं.. जो अनदेखी होती हैं.. दूसरा नहीं उसे देख पाता…
और सही हैं भय, पीड़ा, नकारात्मक भावनाएं पैदा होने लगती हैं.. प्रभु आपने बिल्कुल सही कहा है..
मैं पीड़ा में हु😔
It’s very true.
It’s very true. Love should be unconditional.