इस संसार की उपमा एक अंतहीन शानदार रेस्टोरेन्ट से की जा सकती है। जब तक आप अपने मनपसंद पकवानों का ऑर्डर देते रहेंगे, तब तक यह आपको हर्षपूर्वक परोसता रहेगा। परंतु, इसकी परोसने की तैयारी और सेवा का समय आपके कर्मों के बैंक में जमा राशि पर निर्भर करता है। कुछ ‘पकवानों’ के लिए आपको दिन, महीने, साल या यहाँ तक कि जन्म-जन्मांतर भी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
यदि स्वादिष्ट व्यंजनों से भरी थाली के बावजूद आप दुखी हैं, अतृप्त हैं, तो समझ जाइए कि आपकी आत्मा आपको कुछ संकेत दे रही है – संसार का भोग अब बहुत हुआ, इससे अधिक भोजन मंगाना केवल आपके दुख और परिभ्रमण रूपी प्रतीक्षा के समय को बढ़ाएगा।
समय आ गया है बिल चुकाकर बाहर निकलने का। संकेत: बाहर निकलने के द्वार का नाम है – ‘गुरु’।
हे जीव! क्या इच्छत है अब? है इच्छा दुःख मूल ।
जब इच्छा का नाश तब, मिटे अनादि भूल ।।
-श्रीमद् राजचन्द्र जी (मारग साचा मिल गया)
Very useful for me
So very true, it’s right time now to settle the Bill.