मन: तुम वही हो जिसका तुम विचार करते हो।
मैं: मैं तब हूँ जब मैं विचारों से परे हूँ।
मन: जीवन द्वंद्व में है।
मैं: जीवन एक्यता में है।
मन: मैं ही कर्ता हूँ।
मैं: कर्ता, कर्म और कृत्य – सब एक ही हैं।
मन: ईश्वर सर्वशक्तिमान है।
मैं: तुम और ईश्वर एक हो!
मन: कैसे?
मैं: अपना आवरण हटाओ और “मैं” को जानो।
જય કૃપાળુ પ્રભુ🙏
મન અને હું ની વચ્ચે ના માનસિક યુદ્ધ મા આપના ઉપદેશ થી જ થોડી સ્થિરતા આવી શકી છે.
પ્રભુ બહુ અજ્ઞાની જીવ છું,
આપની કૃપા દ્રષ્ટિ ની યાચક છું.
ગ્રહો પ્રભુ જી હાથ.
આપના અનેકો ઉપકાર માટે કોટી કોટી વંદન શ્રી સદગુરુ 🙏🙏🙏
श्री गुरु माँ अहो उपकार! मैं आपका आषय समझ गई हु.. मुझे हर परिस्थिती में स्थिरता प्रदान करें।
यह तो सच है कि मैं का आवरण मुक्ति में बाधा है। आपकी कृपा से मन (जगत) और मैं (जीव) के स्वरूप को जानकार रुपांतरण होता भी है, किन्तु माया अपनी और खींच कर बेहोश कर गिराती है।आपके आयोजन …. स्व-अध्ययन, मन की बात, भक्ति, सत्संग, साधना उस माय से ऊपर उठाते हैं।
अहो उपकार श्री गुरु ,अहो उपकार!🙏♥️🪷