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तुम यात्री हो या तीर्थ-यात्री?

यात्री और तीर्थ-यात्री – दोनों ही प्रवास में हैं लेकिन दोनों के अनुभव में स्वर्ग-नरक जितना अंतर होता है। 

यात्री को मंज़िल की खोज है इसलिए भय और अनिश्चितता के साथ यात्रा करता है। परंतु तीर्थ-यात्री को मंज़िल की खबर है, इसलिए उसका हर कदम निडरता और निश्चितता के साथ उसी ओर उठता है।

यात्री सफलता के अनजान अनुभव की ओर जाता है इसलिए सदा थका हुआ रहता है। परंतु तीर्थ यात्री सत्य की सनातन खोज में निकलता है इसलिए सदा उत्साह से भरा रहता है। 

यात्री की तुलना सदा दूसरे यात्रियों से होती है इसलिए शक्ति का व्यय दूसरों पर होता रहता है परन्तु तीर्थ-यात्री की सारी तुलना स्वयं से होती है जिस से उसकी शक्ति का उपयोग स्वयं के लिए होता है।  

निर्णय करो – तुम यात्री हो या तीर्थ-यात्री?


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11 Comments

  1. हम तो गुरु मां ऐसे यात्री थे जिनकी ना कोई मंजिल थी ना कारवां, पर अब आपके सानिध्य में तीर्थ यात्रा में मंजिल भी तय है और रास्ता भी तय है। अहो उपकार! कोटि-कोटि वंदन।

  2. जय कृपालु प्रभु

    आपकी कृपा में मेरी यात्रा अब तीर्थ यात्रा में बदल रही है। मार्ग और मंजिल दोनो आप हो।

  3. ये तीर्थ यात्रा की मनोदशा का निर्माण एक प्रत्यक्ष सद्गुरु द्वारा किया जाता है, तो फिर न ही यात्रा करने का कोई डर, और ना ही मंजिल को पाने की फ़िकर रहेगी!

    ऐसे सदगुरु के चरणों में अनन्य भक्ति से नमन 🙏

  4. જય કૃપાલુ પ્રભુ
    હમણાં સુધી તો પ્રવાસી જ હતા. ગુરુ કૃપા થી જાણ્યું કે હું પ્રવાસી નથી યાત્રાળુ છું, અને મારે યાત્રા કેવી રીતે કરવાની છે, એ પણ શ્રી ગુરુ એ જ સમજાવ્યું.
    અહો ઉપકાર શ્રી ગુરુ, અહો ઉપકાર 🙏🙏🙏

  5. जीवन की शुरुआत तो यात्री बनकर ही हुई थी। जहाँ भय,दुख,चिंता आदि बहुतायत में थे। यह मुझे आज स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।
    ऐसा सौभाग्य तब मिला जब मुझे हमारे प्रत्क्षय सद्गुरू ने अपनी करुणमयी शरण में लिया। उनकी कृपा से यात्री और तीर्थयात्री के मध्य का अंतर सरलता से अनुभव कर पा रही हूँ। अपने जीवन में प्रत्येक कार्य में उत्साह को देख रही हूँ।
    सामने सद्गुरू हैं इसलिए निश्चिंत हैं कि मंज़िल तक सुखपूर्वक अवश्य पहुँच जाएँगे।
    हमें सद्गुरू ने ही सिखाया, शक्ति को कहाँ व्यय करना है और कैसे शक्ति का संचय करना है। यह तीर्थ का मार्ग बहुत सुंदर है। इस यात्रा के अन्य सहयात्री कोई सामान्य नहीं हैं। जरा पिछड़ने लगे नहीं की हाथ आगे बढ़ाकर हमराही बना लेते हैं। ऐसे विनम्र विवेकी स्वभाव के साथी का होनाआश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि हमारे सद्गुरू की परछाई है यह हमराही।
    अपने श्री गुरु जी के बल से यह बात बहुत गर्व से निर्भय होकर कह सकते हैं कि हम अब निश्चिंत तीर्थयात्री है!!!!
    अहो आश्चर्य !!!
    अहो उपकार श्री गुरु जी !!!!

  6. श्री गुरु मेरे साथ है, मैं तीरथ यात्री हूं।

  7. श्री गुरु,

    मैं एक यात्री से तीर्थ-यात्री में परिवर्तित हो चुकी हूँ। आपकी शरण में आकर मेरी जीवनशैली में सकारात्मक रूपांतरण हुआ है, जिससे मैं अब निडरता और सत्य की खोज में उत्साह से भरी रहती हूँ।

    अहो उपकार श्री गुरु 🙏🏻

  8. मैं तीर्थ यात्री हूँ

    मुझमें होश और जोश दोनो ही है, और मैं उत्साह के साथ अपनी तीर्थ यात्रा कर रहा हूँ!
    मैं अपने साक्षात्कार के लक्ष्य तक पहुचने के लिए आपके मार्गदर्शन का इन्तिज़ार करता हूँ और करता रहूँगा।

  9. हम तीर्थ यात्री हैं क्योंकि एक सदगुरु के साथ हम अपनी तीर्थ यात्रा पर हैं। हमें अपनी मंजिल का पता है, हमें कोई थकावट नहीं है और कोई डर भी नहीं है। और ये सब एक सदगुरु के सानिध्य में ही होता है। लव यू सदगुरु 🙏🏻

  10. मैं यात्री थी.. अब तीर्थ यात्री होकर, मेरी यात्रा प्रत्यक्ष सद्गुरु के साथ हो रही है।
    अहो उपकार श्री गुरु, अहो उपकार! 🙏♥️🪷

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