प्रकृति का संपूर्ण सौंदर्य इसलिए खूबसूरत है क्योंकि यह अप्रतिबंध बहता है। जब एक फूल से खुशबू निकलती है, तो वह किसी खास मधुमक्खी तक ही सीमित नहीं रहती। अगर फूल अपने सुगंध का स्वभाव सिर्फ एक ही मधुमक्खी के लिए छुपाकर रखे, तो वह इतना अप्राकृतिक हो जाएगा कि वह अंततः अपनी खुशबू बिखेरना भूल जाएगा, भले ही वह मधुमक्खी आसपास हो।
प्रेम हमारे स्वभाव की गूंज है। जब यह स्वभाव “एक” या “कुछ” तक ही सीमित रहता है, तो गूंज अंततः मर जाती है। और यह हमें सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हमारे पास देने के लिए कोई प्रेम बचा भी है? भीतर से प्रेम देने के बजाय, हम बाहर खोजना शुरू कर देते हैं। बाहर में प्रेम खोजना सिवाय वासना, निर्भरता, गुलामी और बंधन के कुछ नहीं है।
अपने स्वभाव को सीमित रख कर उसका दमन न करें। जो आपके भीतर अनंत मात्रा में मौजूद है उसे बाहर न खोजें। एक फूल की तरह, अपने स्वभाव को भीतर से बाहर की ओर बहने दें, ताकि जो भी पास आये वो उसकी सुगंध से वंचित न रहे। यही है आपका सौंदर्य। यही है प्रेम।
Our true nature is to echo, radiate… In your presence.
Thank you Sri Guru 🙏
स्व का विस्तार। नमन श्री गुरु
We are all blossoming in your fragrance Sri Guru, which is so natural and abundant that no one is left ever. Such is thy grace on us. Aho Upkaar ! Sadguru aho Upkaar !
इस अद्वितीय ज्ञान को साझा करने के लिए श्री गुरु का ह्रदय से आभार। आपके मार्गदर्शन से हम आत्मा के सुंदर समर्पण के महत्त्व को समझते हैं तथा अनुभव करते हैं, जिससे प्रेम की अद्वितीयता और सौंदर्य बिना सीमा के व्यक्त होते हैं। आपके आशीर्वाद से हम सीख रहे हैं कि सच्चा प्रेम अपने असली स्वरूप में स्वतंत्रता और सामंजस्य से बहना चाहिए, जैसे प्राकृतिक सौंदर्य अपनी महिमा में बहता है। श्री गुरु आपसे मिले इस आदर्श विचार के लिए हम कृतज्ञ हैं।
अहो उपकार प्रभु!
प्रेम के सुंदर नैसर्गिक आयाम! अहो, अहो उपकार श्री गुरु साहेब जी! ऐसे दिव्य बोध को इतनी सरलता से उड़ेल देने का शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया!🙏🙏🙏