
मनुष्य को अपने जीवन में रहे बंधन ‘बंधन’ क्यों नहीं लगते? इन बंधनों से छूटने की तमन्ना क्यों नहीं होती? संसार की क्षणिकता को जानते हुए भी क्यों उससे सुख पाने की अंधी-दौड़ थमती नहीं? हमारी संस्कृति तो अनेकों संत-जनों के बोध-वचनों से समृद्ध रही है, जो सदा सुख-प्राप्ति का मार्ग उजागर करते आए हैं। परंतु फिर भी उनके चरणों में यह सिर झुकता क्यों नहीं?
इन्हीं उफ़नते प्रश्नों को अभिव्यक्त करती इस कविता को पढ़ते हुए, आइए उतरें अवलोकन में…
जग बंधन बंधन दिखा नहीं
सिर संत चरण में झुका नहीं
छूटन की अगन भी जगी नहीं
तरने की लगन भी लगी नहीं
मूरख दिन रैन जो सोवत है
पल पल साँसे तू खोवत है
आभास ना तुझको होवत है
दुख भार सदा ही ढ़ोवत है
माया की महिमा गावत है
सुख स्वप्न सुवर्ण सजावत है
पर क्षणभर चैन ही पावत है
भव आवत हैं भव जावत हैं
मन की गाँठे ना खोलत है
सुख बाहर है, यह बोलत है
फिर क्यों राही तू रोवत है
दुख भार सदा ही ढ़ोवत है
दुई के फेरे को जान ज़रा
सच क्या है तू पहचान ज़रा
रख गुरु वचनों का मान सदा
कर उनका मन में ध्यान सदा
जब जब नैनन वो छावत हैं
जब जब हिरदै वो आवत हैं
सब अंधियारे छट जावत हैं
सब तृष्णाएँ मिट जावत हैं
वो जब बोलें, अंतर सुधरे
वो जो बोलें, गहरा उतरे
गुरु चरणों सा तीरथ नाहीं
गुरु वचनों सा अमृत नाहीं
छूटन की अगन जगाएं वही
तरने की लगन लगाएं वही
बंधन बंधन दिखलाएं वही
मुक्ति पथ सुगम बनाएं वही
मुक्ति पथ सुगम बनाएं वही…
A humble dedication by a grateful seeker
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Guru charno sa teerath nahi
Guru vachano sa amriit nahi
Chutan ke lagan lagye wahi
Jai Sri Guru
Jai Samarth Sadguru Maa
Barambar Vandana 🙏❤️
Sri guru thankyou so much for everything ap ne Mere brain ke neuron change kar diye jindagi Jina asan kar diya har pal khush rhana sikha diyA