सुबह होती है। सूरज एक एक पक्षी को जा कर जगाता नहीं है। सुबह होती है तो सूरज एक-एक वृक्ष को झकझोरता तो नहीं है कि जागो, सुबह हुई, छोड़ो स्वप्न को, दिन का श्रम शुरू करो! इधर सूरज उगता है और अनिवार्य रूप से प्रकृति जाग जाती है। जो जितना प्राकृतिक है वह उतना ही शीघ्र जाग जाएगा।
लेकिन मनुष्य घोर निद्रा में सोया हुआ है। उसे जगाने कि लिए भी प्रकृति की एक सुंदर व्यवस्था इस संसार में है। सद्गुरू की प्रेम समाधि यानी प्रकृति की सबसे सामर्थ्यवान और शुद्धतम अभिव्यक्ति! समाधि की पुकार महासागर के उछाल जैसी होती है जो मुक्ति की अभिलाषा से भरे प्रेमी हृदय को खोज लेती है। जब शुद्ध समर्पण रूपी बूँद से भरा हुआ हृदय सद्गुरू को पुकारता है तो महासागर अवश्य आता है। प्रेम समाधि का सहज नियम ऐसा है कि जब यह परिशुद्ध प्रेम का महासागर शिष्य के आमंत्रण पर आता है तो केवल श्रद्धा रूपी एक बूँद को ही अपने में नहीं समाता लेकिन मन-बुद्धि में रही सभी मलिनताओं को भी अपने में समेट कर उसे भी स्वच्छ कर देता है। आहा!
सागर बूँदों को खोजता है जिस से कि उन्हें सागर बना सके और बूँदें भी केवल समर्पण के भरोसे आ जाती हैं क्योंकि उन्हें सागर का सहज नियम मालूम है। कितने भी मलिन भाव मौजूद हैं और अभी तो मन भी उलझा हुआ है लेकिन हृदय जानता है कि जब सागर उछलेगा तब सब कुछ धुल जाएगा, भूल जाएगा और सागर में ही घुल जाएगा..!
True
जय कृपालु श्री गुरु 🙏
अमृत वेला में आपका प्रेम का महासागर ही मुझे नींद से जगाने आता है 🌹
अहो उपकार श्री गुरु 🙏अहो उपकार🙏
Thank you so….. much Prabhu 🙏
प्रभु, अहो उपकार। मैं अब भी आपके प्रेम लहर का इंतज़ार कर रहा हूँ। कभी-कभी बहुत अनुभव होता है। आप कृपा करें।
जय कृपालु श्री गुरु,
अमृत वेला में आपका प्रेम हृदय को शुद्ध और आत्म विभोर बना देता है। कोटि-कोटी नमन, वंदन।