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ध्यान का महत्व : संतों ने ध्यान पर इतना ज़ोर क्यों दिया है?

श्री गुरु द्वारा लिखित ध्यान के महत्व पर कुछ शब्द

ध्यान – यानी जहाँ मन स्वयं से ऊपर उठे और अस्तित्व में रहे अनंत सुख व शांति का अनुभव करे। संतों ने ध्यान को महत्व ही इसलिए दिया है क्योंकि ध्यान ही वह मार्ग है जिस पर चल कर हम स्वयं के अस्तित्व की पहचान कर सकते हैं। 

ध्यान मार्ग क्या है? जहाँ मनुष्य द्वारा किए हुए सभी विभाजन समाप्त हो जाते हैं वहीं से ध्यान का मार्ग आरंभ हो जाता है; जहाँ मनुष्य के मन की कल्पना नहीं जा सकती है वहीं से ध्यान की वास्तविकता उघड़ती है; जहाँ मन की दौड़ ठहरती है वहीं से ध्यान की उड़ान शुरू होती है। ऐसा अकल्पनीय ध्यान मार्ग ही सभी संतों का हृदय-मार्ग है जिसमें मुक्ति के सभी साधन सुलभ हैं।

सभी विभाजन व्यर्थ हैं 

मनुष्य का जन्म किसी भी जाति, कुल अथवा संप्रदाय में हो सकता है जो एक सामाजिक व्यवस्था है। परंतु इस व्यवस्था से अस्तित्व का विभाजन नहीं हो जाता है। पूरी पृथ्वी आज सरहद, भाषा और नियम के तहत विभाजित है जो व्यवस्था बनाने में सहायक है परंतु मनुष्य का मूल अस्तित्व अविभाज्य है। जिस अखंड सुख और शांति को हमारा मन खोज रहा है उसकी प्राप्ति ध्यान से ही संभव है। विभाजन से भेद-भाव बढ़ते हैं, ऊँच-नीच के भाव आते हैं और श्रेष्ठ व निम्न की धारणाएँ पैदा हो जाती हैं। यही धारणाएँ मनुष्य को मनुष्य से अलग कर देती हैं। वास्तव में तो इस जगत में ऐसे कोई भी विभाजन है ही नहीं क्योंकि हर कोई अपने पूर्ण होने की यात्रा में है। यह पूर्ण होने की यात्रा ही ‘ध्यान’ है। 

जो जोड़े वही ध्यान है 

संत वह है जिसने अंत की बात का अंत जान लिया है। अंत की बात का अंत यह है कि यहाँ सभी कुछ ‘एक’ है अर्थात् समस्त जगत चाहे अलग-अलग दिखता है परंतु अंततः सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। यहाँ कोई एक व्यक्ति भी यदि दुखी है तो उसके दुःख के कारणों में अनेक व्यक्ति-वस्तु-स्थितियाँ सम्मिलित होती हैं और उसकी दुःख की अभिव्यक्ति अनेक लोगों को दुखी कर जाती है। इस जगत में कोई एक व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध होता है तो अनेक कारणों का योगदान होता है इस उपलब्धि में और साथ-साथ अनेकों को लाभ होता है इस ज्ञान से। किसान खेती करता है तो अनेकों कारण संयोजित होते हैं तब जा कर फसल उत्पन्न होती है और फिर यही फसल कितने ही लोगों के लिए जीवन-उपयोगी बन जाती है। ऊपर-ऊपर से दिखते सभी विभाजन मूल में तो एक दूसरे से जुड़े हैं और इस जोड़ से जो हमें जोड़ दे – वही ‘ध्यान’ है और ध्यान का महत्त्व है। 

प्रश्न होगा कि इस जोड़ को जानने की आवश्यकता क्या है? इसका समाधान यह है कि जहाँ तक मनुष्य को यह अनुभव नहीं होता कि सभी कुछ यहाँ जुड़ा हुआ है वहाँ तक वह एक असुरक्षा के भाव में जीता है, भय से ग्रस्त रहता है। जब व्यक्ति को अस्तित्व की एकता की खबर हो जाती है तब वह सावधानी से जीएगा परंतु भय की भावना से मुक्त होगा। जैसे – हमें पता है कि हमारा पैर हमसे जुड़ा हुआ है तो उसमें दर्द होने पर हम भयभीत नहीं होते परंतु सावधान हो कर उपचार करने में लग जाते हैं। ऐसे ही जब किसी संबंध में दरार आने लग जाती है तो ध्यान को उपलब्ध मनुष्य उससे असुरक्षित नहीं होता परंतु सावधान हो कर उपचार की विधि का विवेक प्राप्त कर लेता है।

ध्यान के जगत में जब हम अस्तित्व की एकता के अनुभव की ओर अग्रसर होते हैं तभी से आंतरिक विवेक सक्रिय होना आरम्भ  हो जाता है। 


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2 Comments

  1. Understanding of Meditation 🧘‍♂️ very very good, 🙏🙏

  2. I agree with all content about Dhyan narrated by our Sadguru

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