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संन्यास विवाह – एक गठबंधन मुक्ति की ओर..!

जीवन के कई पड़ाव होते हैं। जिस में से विवाह का निर्णय अति-आवश्यक और जीवन की दिशा बदले ऐसा पड़ाव है। सामान्य युवाओं के लिए विवाह एक ऐसा संकल्प होता है जो जीवन का सबसे प्रतीक्षित अवसर होता है। परंतु ऐसे जीव जो मन में वैराग्य का बीज और धर्म के आधार पर चलकर बड़े हुए हैं, उनके लिए विवाह-आयु के आते ही अनेक सवाल खड़े हो जाते हैं।

श्री गुरु कहते हैं कि मोक्ष मार्ग पर चलना एक आजीवन प्रक्रिया है। ऐसे में सिर पर नाथ और किसी ‘पूरक चेतना’ रूपी राही का साथ अत्यंत आवश्यक बन जाते हैं।

वैराग्य और विवाह 

अध्यात्म के पथ पर चलते हुए युवकों को यह सामान्य प्रश्न उठता है कि क्या विवाह बंधन का कारण होगा? क्या विवाह हमें सांसारिक बना देगा? क्या विवाह की ज़िम्मेदारी निभाते हुए हम मुक्ति के पथ पर चल सकेंगे?

क्या विवाह परिभ्रमण बढ़ने का कारण होगा? और यदि विवाह नहीं किया तो क्या होगा? क्या संन्यास लेना उचित होगा? यदि संन्यास लिया तो परिवार अथवा माता-पिता के प्रति के कर्तव्य का क्या होगा? संन्यास के पश्चात् जीवन-निर्वाह कैसे होगा? और आत्मिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी होगी? क्या विवाह करते ही हमारा वैराग्य दाव पर लग जाएगा?

यदि संन्यास भी नहीं लेते और विवाह में भी नहीं बँधते तो क्या जीवन शुष्क नहीं हो जाएगा? ऐसे में सुख-दुख का साथी कौन बनेगा? यौवन, प्रौढ़ और वृद्ध अवस्था में सहायक कौन होगा? धर्म का पालन करने में सहचर कौन बनेगा?

वैराग्य से सजे हुए हृदय को ऐसे प्रश्नों के बीच अत्यंत निरुपायता प्रतीत होती है। अध्यात्म के पथ पर चल रहे परिवारों में भी बच्चों के बड़े होने पर ऐसी चिंताएँ बनी रहती हैं।

ऐसी असमंजस की स्थिति में संतों की दूरदर्शिता और करुणा से आते हुए समाधान ही सर्वश्रेष्ठ उपाय का आधार बनते हैं। और ऐसे ही एक समाधान को परमार्थ आज्ञा मान कर, श्री गुरु के बोध बीज को धारण कर, एक युगल ने प्रायः नई जीवन शैली को अपनाया जो विवाह तो है, पर मुक्ति और संन्यास के सर्वोत्तम लक्ष के प्रति समर्पित है।

२४ अक्तूबर २०२३, गुरुग्राम में श्रीमद् राजचंद्र मिशन दिल्ली के संस्थापक श्री गुरु रत्ना प्रभु और निलेश ठोसानी के सुपुत्र ‘पार्थ’, और गौतम व नेहा कामदार की सुपुत्री ‘कृति’ ने आदरणीय संतों और समाज की उपस्थिति में ‘संन्यास विवाह’ में प्रवेश किया। इस विवाह में जीवन निर्वाह हेतु दाम्पत्य तो है, मगर परिभ्रमण के बीज का प्रथम क्षण से त्याग है – अर्थात् आजीवन ब्रह्मचर्य के नियम के साथ यह संन्यास विवाह संपन्न हुआ है। वैराग्य की ज्योति और प्रौढ़ मति से विचार करते लोगों ने इस नई जीवन शैली का अत्यंत आश्चर्य, अहोभाव और आदर से अभिवादन किया है। और साथ ही अध्यात्म के पथ पर चलते अनेकों युवक-युवतियों के लिए यह दिन एक नई विचारधारा और आत्मविश्वास लेकर उपस्थित हुआ है।

संन्यास विवाह और ब्रह्मचर्य का आशय

संतों का योगबल संसार को बढ़ाने वाली माया की शक्ति से अनेक गुना अधिक बलवान माना जाता है। माया और उसकी संसार रचना अत्यंत मोहक प्रतीत होकर जीव को परिभ्रमण के चक्र में ही बाँध कर रखती है। यह माया शक्ति ही वर्तमान और भविष्य के अनंत दुख का कारण होती है। शास्त्र कहते हैं कि परिभ्रमण का कारण यही ४ संज्ञाएँ हैं – आहार, भय, मैथुन और परिग्रह जो माया शक्ति की अत्यंत बलशाली बेड़ी के चार सशक्त विभाग हैं।

वैराग्य के आनंद का स्वाद ले चुके जीव अब परिभ्रमण से छूटने की तीव्र इच्छा रखते हैं तो ऐसे में परिभ्रमण में बँधने के कारण से दूर रहना चाहते हैं। श्री गुरु का बोध अत्यंत सरल है – हम न आहार छोड़ सकते हैं, न परिग्रह, और न ही भय। अपने मनोबल से हम केवल मैथुन का त्याग कर सकते हैं। ऐसा करने से ४ विभागों वाली संसार की सशक्त बेड़ी के एक भाग को हम शक्तिहीन बना देते हैं जिस से माया शक्ति को हमें बाँधने का सामर्थ्य खो जाता है। शास्त्रों में ब्रह्मचर्य का विशेष स्थान और बहुमान है जिसका प्रमुख कारण यही है कि मैथुन त्याग से ही माया-शक्ति जीव पर अपना आधिपत्य खोने लगती है। इस शक्ति के जाते ही अन्य तीन संज्ञाएँ ‘जली सीन्दरीवत्’ हो जाती हैं, अर्थात् जली हुई रस्सी के समान जो रस्सी का आकार तो रखती है परंतु बाँधने के गुण को खो चुकी होती है!

संन्यास विवाह का एक और महत्वपूर्ण आशय है। ब्रह्मचर्य के फल स्वरूप जीव अपने संतान और उससे उत्पन्न होती वर्षों की विस्तृत सांसारिकता से मुक्त रहते हैं। अपनी प्रजाति की शिक्षा, सुरक्षा आदि में वस्तुतः जीवन के २० वर्ष निकल जाते हैं परंतु संन्यास विवाह में जीव के समय और शक्ति का संचय होता है जिसे आत्म-शोध और साधना के लिए समर्पित कर के जीवन-लक्ष्य को सुचारू रूप से साधा जा सकता है।

तो फिर “विवाह” क्यों?

यह प्रश्न अनिवार्य रूप से उठता है। यदि ब्रह्मचर्य में ही रहना था तो विवाह का बंधन क्यों? ज्ञान और अकारण करुणा से भरे हुए संतों के हृदय में जीव के हर प्रश्न सरल समाधान मिलता है।

श्री गुरु कहते हैं कि मोक्ष मार्ग पर चलना एक आजीवन प्रक्रिया है। ऐसे में सिर पर नाथ और किसी ‘पूरक चेतना’ रूपी राही का साथ अत्यंत आवश्यक बन जाते हैं। युवाओं को सद्गुरू का आश्रय मिलने से जीवन को नाथ और सत्-दिशा तो प्राप्त हो जाती है परंतु इस दिशा में चलने वाले एक साथी का भी साथ हो तो मोक्ष मार्ग खेलपूर्ण होने लगता है। संयम की भूमिका पर विवाह में बंधे जीव एक दूसरे को मार्ग में सहायक बनते हैं, प्रेरणा का कारण बनते हैं और संयम के बल से एक दूसरे की गिरती वृत्तियों को अटकाने के शुभ प्रबल निमित्त भी बनते हैं। श्री गुरु कहते हैं कि मुक्ति के पंथ पर परम तारक तो सद्गुरू के वचन-मुद्रा-समागम और आज्ञा ही है लेकिन साथ ही यदि जीवन साथी भी इसी पथ का आराधक है तो परस्पर धर्म-जागृति के साथ मुक्ति के पंथ पर आगे बढ़ना सरल और सुनिश्चित हो जाता है।  

संन्यास विवाह की इस व्यवस्था में वैराग्य के बीज, मनोबल की दृढ़ता और मोक्ष मार्ग पर चलने के सारे आयाम सम्मिलित हैं। ऐसे देखें तो यह संन्यास विवाह संसार में रहकर, सेवा-संयम-साधना के प्रांगण में प्रवेश कर के मुक्ति का कारण बन सके – ऐसी क्रांतिकारी व्यवस्था है। स्मरण रहे, कि इनका आधार किसी सद्गुरू के प्रति का प्रेम और समर्पण होना चाहिए। सद्गुरू के प्रति अनन्य प्रेम और भक्तिपूर्ण समर्पण में ही इतनी शक्ति होती है कि जनमोंजन्म के संस्कारों के आगे वह ढाल बन कर खड़ी हो जाती है – ऐसा सनातन नियम और मुमुक्षुओं का अनुभव है।

संतों की उपस्थिति में ऐतिहासिक कदम  

संन्यास विवाह के ऐसे अनूठे उद्देश्य और प्रबल प्रभावक जीवन शैली की स्थापना हेतु कई संतों ने अपनी प्रत्यक्ष और परोक्ष उपस्थिति से आशीर्वाद दिए, जिन में श्रीमद् राजचंद्र मिशन धरमपुर के प्रसिद्ध संस्थापक पूज्य श्री राकेश भाई ने स्वयं इस जोड़ी को ब्रह्मचर्य की शपथ कराई। श्री गुरु की प्रत्यक्ष मौजूदगी में इस पूरे विवाह आयोजन में देवी की अलौकिकता और दिव्यता का वातावरण निर्मित हुआ जो सभी के अनुभव प्रमाण में आता रहा। संन्यास विवाह के इस दूरदर्शी बोध और प्रयोग से एक नये आदर्श की स्थापना समाज में हुई है। अध्यात्म के पथ पर चलते हुए धर्म के बीज आज अनेक युवाओं में उग रहे है – और संन्यास विवाह की ऐसी उत्तम व्यवस्था उन बीजों को मुक्ति का पोषण देने में सशक्त और संपूर्ण है – ऐसा संतों का हृदय और समय की धारा देखती है। 

संन्यास विवाह की इस ऐतिहासिक घटना ने समय की धारा को एक नया मोड़ दिया है। श्री गुरु कहते हैं कि इस में वैराग्य से भरे हुए चित्त को संसार में रहते हुए भी सुरक्षा का अनुभव होगा और यह मनुष्य जीवन जन्मोंजन्म की परिभ्रमण की शृंखला को तोड़ने के लिए एक प्रमुख पड़ाव बनेगा। मात्र राग-द्वेष रहित होने की बातें नहीं करनी हैं परंतु ऐसे धर्म आचरण को जीवन का आधार भी बनाना है जो हमें राग-द्वेष रहित करे – यही मनुष्य जीवन की सफलता है। 

“सत्पुरुषों का योगबल जगत का कल्याण करें।”



Press Release (Open Circulation)

Editorial Team, Shrimad Rajchandra Mission Delhi

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7 Comments

  1. श्री गुरु के चरणों में कोटि-कोटि नमन। यह ऐतिहासिक संन्यास विवाह का हिस्सा हम भी थे। आहोभव है, आपके चरणों में कोटि-कोटि नमन, सद्गुरु। आपकी इस पहल पर सभी युवा गौर करें।। काश सदगुरु, आप हमें पहले मिले होते। राज परिवार को बहुत-बहुत बधाई।🙏🙏🙏💖💖💖💖💖🎊🎊🎊🎊🎊

  2. जय कृपालु
    जय श्री गुरु
    नव युगल को बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
    श्री गुरु प्रणाम, आपके चरणों में कोटि कोटि वन्दन।

  3. संसार में रहकर संसार से अलिप्त!!
    Only possible under Grace of SriGuru 🙏
    Thank-you Parth &Kruti for setting a great example of true Surrender to Divine🙏
    Your names together spell
    KRUPA
    And you have both proven how we can constructively, effectively utilize
    SRIGURU’S KRUPA
    Thank-you SriGuru, for this blog ,in which we get a
    समझ of the स्वरूप of Sanyas Vivah🙏🙏

  4. Jai Kripalu SriGurudev ,
    Ananya sharan ke data ko atyant bhakti se Naman . Your truly are an enlightened soul for me a very dynamic Mahaveer who truly revels in Atma . Only such a soul can burn the rope of this Maya and encourage so many people including the family members first to be that example .
    Fiding you in life is the biggest treasure and I truly do not have a clue where I am going but know one thing it is under your protection always .
    What you have done with this marriage is inspired each one of us to tread more fearlessly than ever before on this path.
    Cannot wait to wet my being in our next Samagam .
    A true unconditional lover I could never find so far anywhere and even if I may have found it before , chakshu were not ready to accept it .
    My humblest standing ovation to this deed of Sanyas marriage besides koti koti Vandan .
    Hum Dhanya hue aapko paakar .

  5. જેના શીરપર ગૂરૂનો હાથ હોય સાથે પ્રભુ કૃપા હોય. તો જ આવા આત્માને પ્રભુ મિલન પ્રાત્પ થવા માટેનો માર્ગ સરળ બને.

  6. જીવાતા જીવનમાં કઠિનમાં કઠિન જો છોડવાની કોઈ ચીજ હોય તો તે maithun નો આજીવન ત્યાગ. ભોગ વિલાસ માં ડૂબાડી દીએ એવું પાત્ર ભર યુવાનીમાં સામે હોવા છતાં.. ચલિત ના થવું, એ બન્ને આત્મા પૂર્વ ભવના સંસ્કાર લઈને આવેલા, અને પૂ. ગુરુદેવના આશીર્વાદ વિના આ નિર્ણય શક્ય નથી. ચીં. પાર્થ અને ચીં. કૃતિ આપ બન્ને ને અમારા બંન્ને તરફથી હ્રદયથી ધન્યવાદ સાથે અભિનંદન.. પૂ.ગુરુદેવ ના શુભાસિશ અને માર્ગદર્શન હેઠળ જલ્દીમાં જલ્દી ભવ ભ્રમણ ઓછા કરી ઇચ્છેલી ગતિ બન્ને આત્મા પ્રાપ્ત કરો એવી પ્રાર્થના… હસમુખ ટીમ્બડીયા. Mangalore.

  7. पार्थ प्रभु और कृति प्रभु के संन्यास का निर्णय अभूतपूर्व है और इनके निर्णय पर सद्गुरु श्री प्रभु की सहमति, प्रभु के त्याग समर्पण की उच्च पराकाष्ठा है। सद्गुरुदेव बेन प्रभु की जय हो।

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