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मोक्षमाला शि. #16 : “सच्ची महत्ता” (Mokshmala)

कितने मानते हैं कि लक्ष्मी से महत्ता मिलती है; कितने मानते हैं कि महान कुटुंब से महत्ता मिलती है; कितने मानते हैं कि पुत्र से महत्ता मिलती है; कितने मानते हैं कि अधिकार से महत्ता मिलती है। परंतु उनका यह मानना विवेकदृष्टि से मिथ्या सिद्ध होता है। वे जिसमें महत्ता मानते हैं उसमें महत्ता नहीं, परंतु लघुता है। लक्ष्मी से संसार में खानपान, मान, अनुचरों पर आज्ञा, वैभव, ये सब मिलते हैं और यह महत्ता है, ऐसा तुम मानते होंगे; परंतु इतने से उसे महत्ता मानने की जरूरत नहीं है। लक्ष्मी अनेक पापों से पैदा होती है।  आने के बाद यह अभिमान, बेभानता और मूढ़ता लाती है। कुटुंब समुदाय की महत्ता पाने के लिए उसका पालन-पोषण करना पड़ता है। उससे पाप और दु:ख सहन करने पड़ते हैं। हमें उपाधि से पाप करके उनका उदर भरना पड़ता है। पुत्र से कोई शाश्वत नाम नहीं रहता। इसके लिए भी अनेक प्रकार के पाप और उपाधि सहने पड़ते हैं, फिर भी इससे अपना क्या मंगल होता है? अधिकार से परतंत्रता या सत्तामद आता है और इससे जुल्म, अनीति, रिश्वत तथा अन्याय करने पड़ते हैं, अथवा होते हैं। तब कहिये, इसमें से महत्ता किसकी होती है? मात्र पापजन्य कर्म की। पाप कर्म से आत्मा की नीच गति होती है; जहाँ नीच गति है वहाँ महत्ता नहीं है परंतु लघुता है।

आत्मा की महत्ता तो सत्य वचन, दया, क्षमा, परोपकार और समता में रही है। लक्ष्मी आदि तो कर्ममहत्ता है। ऐसा होने पर भी सयाने पुरुष लक्ष्मी को दान में देते हैं, उत्तम विद्याशालाएँ स्थापित करके पर-दु:ख भंजन होते हैं। ‘एक स्त्री से विवाह करके’ मात्र उसमें वृत्ति रोक कर पर-स्त्री की ओर पुत्रीभाव से देखते हैं। कुटुंब द्वारा अमुक समुदाय का हितकाम करते हैं। पुत्र होने से उसे संसार भार देकर स्वयं धर्ममार्ग में प्रवेश करते हैं। अधिकार द्वारा चतुराई से आचरण करके राजा-प्रजा दोनों का हित् करके धर्मनीति का प्रकाश करते हैं। ऐसा करने से कुछ सच्ची महत्ता प्राप्त होती है; फिर भी यह महत्ता निश्चित नहीं है। मरण-भय सिर पर सवार है। धारणा धरी रह जाती है। योजित योजना या विवेक शायद ह्रदय में से चला जाय, ऐसी संसार मोहिनी है; इसलिए हमें यह नि:संशय समझना चाहिये कि सत्य वचन, दया, क्षमा, ब्रह्मचर्य और समता जैसी आत्ममहत्ता किसी भी स्थल में नहीं है। शुद्ध पंच महाव्रतधारी भिक्षुक ने जो ऋद्धि और महत्ता प्राप्त की है उसे ब्रह्मदत्त जैसे चक्रवर्ती ने लक्ष्मी, कुटुंब, पुत्र या अधिकार से प्राप्त नहीं की, ऐसा मेरा मानना है!


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1 Comment

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