Shrimad RajchandraSpirituality

मोक्षमाला शि. #12 : “उत्तम गृहस्थ” (Mokshmala)

परम कृपालु देव श्रीमद् राजचन्द्र जी को सातवें वर्ष में जातिस्मरण ज्ञान हुआ जिसके परिणाम स्वरूप अनेक जन्मों का मोक्ष-लक्ष्यी ज्ञान उजागर हुआ था। सोलहवें वर्ष में उन्होंने ऐसे विविध विषयों को समझाते हुए ‘मोक्षमाला’ का आलेखन किया जो मुमुक्षु के लिए लाभकारी बनें। इस शृंखला के अन्तर्गत मोक्षमाला के 108 पाठों में से कुछ पाठ प्रस्तुत किए जा रहे हैं।


संसार में रहते हुए भी उत्तम श्रावक, गृहाश्रम से आत्म-साधन को साध्य करते हैं; उनका गृहाश्रम भी सराहा जाता है। 

  • ये उत्तम पुरुष सामायिक, क्षमापना, चौविहार-प्रत्याख्यान इत्यादि यमनियमों का सेवन करते हैं। 
  •  पर-पत्नी की ओर माँ-बहन की दृष्टि रखते हैं। 
  • यथाशक्ति सत्पात्र में दान देते हैं। 
  • शांत, मधुर और कोमल भाषा बोलते हैं। 
  • सत्शास्त्र का मनन करते हैं।   
  • यथासंभव उपजीविका में भी माया, कपट इत्यादि नहीं करते। 
  • स्त्री, पुत्र, माता, पिता, मुनि और गुरु इन सबका यथा योग्य सम्मान करते हैं। 
  • माँ-बाप को धर्म का बोध देते हैं। 
  • यत्ना से घर की स्वच्छता, रांधना, शयन इत्यादि को कराते हैं। 
  • स्वयं विचक्षणता से आचरण करके स्त्री-पुत्र को विनयी और धर्मी बनाते हैं। 
  • सारे कुटुंब में ऐक्य की वृद्धि करते हैं। 
  • आये हुए अतिथि का यथायोग्य सम्मान करते हैं। 
  • याचक को क्षुधातुर नहीं रखते। 
  • सत्पुरुषों का समागम और उनका बोध धारण करते हैं। 
  • निरंतर मर्यादा सहित और संतोषयुक्त रहते हैं। 
  • यथाशक्ति घर में शास्त्रसंचय रखते हैं। 
  • अल्प आरंभ से व्यवहार चलाते हैं। 

ऐसा गृहस्थाश्रम उत्तम गति का कारण होता है, ऐसा ज्ञानी कहते हैं।  


You may also like

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *