
ध्यान साधना की ओर आकर्षित हुए सभी व्यक्तियों में यह समान दुविधा होती है कि ध्यान के लिए सही विधि कैसे चुनें? हर तरफ़ ध्यान की अनेक विधियाँ हैं उनमें से हमारे लिए कौन से विधि उपयोगी है इसका निर्णय साधना से पूर्व कैसे लिया जा सकता है?
ध्यान और सहजता
ध्यान के लिए हमेशा उस विधि से शुरू करना चाहिए जो रुचिकर लगे। ध्यान विधि को जबरदस्ती थोपना नहीं चाहिए। यदि जबरदस्ती ध्यान को थोपा गया तो शुरुआत ही गलत हो जाएगी। जब किसी विधि को हम बहुत जोर-जबरदस्ती से करते हैं तो उसका सहज होना असंभव हो जाता है। और ध्यान की सम्पूर्ण यात्रा ही सहज होने की व्यवस्था है। स्मरण रहे, हम उसी विधि में गहरे उतर सकते हैं जिसमें हमें रस आता हो, शरीर और मन का तालमेल बैठता हो और विधि में प्रवेश करते ही एक शांति का भाव प्रकट होने लगता हो। तो जब कोई विधि रुचिकर लगने लगे तो फिर और-और विधियों के लोभ में नहीं पड़ना चाहिए। फिर तो और अधिक उसी विधि में गहरा उतरें। उस विधि से अनंत में झांकना हो सकता है।
प्रकृति अनुसार प्रयोग
ध्यान की सही विधि को चुनने से पूर्व साधक को अपनी प्रकृति से परिचित होना आवश्यक है। यदि मनुष्य शरीर प्रधान है अर्थात् उसका सारा ध्यान अपने शरीर को सम्भालने में ही लगा रहता है तो शरीर को केंद्र में रख कर करी जाने वाली विधियाँ उपयोगी होती हैं। इन विधियों में शरीर को अलग-अलग ढंग से देखना महत्वपूर्ण होता है। यदि व्यक्ति भावना प्रधान है तो ध्यान के लिए मंत्र या भक्ति की कोई पंक्ति साधन बन सकती है। जैसे ॐ, सोहम् आदि का उच्चारण करके आंतरिक स्तर पर ऊर्जाओं को सक्रिय किया जाता है। यदि मनुष्य बुद्धि प्रधान है तो ऐसी क्रियाएँ चाहिए जिससे बुद्धि एकाग्र बने। इन ध्यान विधियों में बुद्धि को इस प्रकार से प्रशिक्षण दिया जाता है कि बुद्धि की विचार शक्ति तो सतेज रहे परंतु अति-विचारकता से विराम मिले। जब साधक अपने स्वभाव से यथोचित रूप से परिचित हो जाता है तो ध्यान के लिए सही विधि का चुनाव सरल हो जाता है।
सद्गुरू – समन्वय की विधि
हमारे संघ में हमने कुछ ऐसी ध्यान विधियों को खोज निकाला है जिसमें मनुष्य की इन तीनों स्तरों, शरीर-हृदय-बुद्धि, पर विशुद्धि हो सके। आज का मनुष्य शरीर, भावनाएँ और तर्क के स्तर पर विभाजित है। जहाँ भौतिक संसार की चकाचौंध देखता है तो वहीं शरीर और इंद्रियाँ उत्तेजित हो जाती हैं। जब विचारों के दायरे में आता है तो कभी अति-भावुक हो जाता है तो कभी अति-तार्किक। ऐसे मनुष्य को ऐसी ध्यान विधि चाहिए जो इन तीनों स्तरों पर उसे विकास का अनुभव करवा सके।
जीवन में यदि एक सद्गुरू का समागम मिला है तो उनकी बनायी हुई विधि ही तुम्हारे लिए सबसे अधिक उपयोगी है क्योंकि सद्गुरू के उज्जवल अंतःकरण में शिष्य के कल्याण का मार्ग सहज झलकता है। परंतु जब तक अभी जीवन में किसी एक सद्गुरू का निश्चय नहीं हुआ है तब तक अपनी प्रकृति को पहचान कर ध्यान विधियों का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन स्मरण रहे – ध्यान की प्रत्येक सटीक विधि में सूक्ष्म स्तर पर कोई-न-कोई फेरफार करने की शक्ति होती है। यदि आप बार-बार ध्यान की विधियों को बदलते रहते हैं तो आंतरिक स्तर पर अराजकता हो सकती है। इसलिए जिस विधि का भी चुनाव करें उसे नियमित रूप से कुछ दिनों तक दोहराएँ और विविध विधियों को एक साथ कर के अपने सूक्ष्म अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कभी न करें।
सीखें प्राण क्रिया – 15 मिनट की स्व-निर्देशित ध्यान प्रक्रिया
Dhyan
Thanks didi Maa ji🙏💐❣️