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संबंधों का गणित

एक समृद्ध जीवन की पहचान

Dedicated by Tanvi Shah | © Shrimad Rajchandra Mission, Delhi

मनुष्य स्वयं अनेक संभावनाओं से भरा हुआ है परंतु यह मनुष्य के आस-पास के वस्तु-व्यक्ति-स्थिति के साथ के सम्बन्धों पर निर्भर करता है कि उसके भीतर से अच्छी या बुरी संभावना को उजागर करे।

मनुष्य चाहे आज का हो या पहले का परंतु उसके जीवन की धारा सनातन है। जीवन की धारा जैसी सदियों पहले थी वैसी ही आज है और वैसी ही सदियाँ बीतने के बाद भी रहेगी। धारा नहीं बदलती परंतु इस धारा में बहता मनुष्य का जीवन बदलता जा रहा है। कहने को, बाहरी जगत में बहुत तनाव है, संघर्ष है, स्पर्धा है और इसलिए मनुष्य पीड़ित है परंतु जिन्होंने जीवन की इस शाश्वत धारा को समग्र रूप से जाना है वह कहते हैं कि पीड़ा का कारण बाहरी संसार में नहीं मनुष्य के मन के भीतर है।

संबंध — समृद्ध या दरिद्र?

मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन, सदा से ही, सम्बन्धों के ताने-बाने में गूँथा हुआ है। दिन से लेकर रात तक, बचपन से लेकर बुढ़ापे तक और जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारा जीवन अनेक प्रकार के जड़ पदार्थ और चेतन व्यक्तियों के साथ सम्बंध बनाता है। यदि इन वस्तु-व्यक्ति-परिस्थितियों के साथ के सम्बंध में दरिद्रता हो तो मनुष्य दुखी होता है और यदि यह सम्बंध समृद्ध हो तो मनुष्य सुख का अनुभव करता है। उदाहरण के लिए — मेरे पास एक फ़ोन है लेकिन मैं उसके मॉडल, आकृति, क्रियाशीलता वग़ैरह से ख़ुश नहीं हूँ तो इस फ़ोन के साथ का सम्बंध मुझे पीड़ित करता रहेगा। ठीक ऐसा ही हमारा दुखपूर्ण सम्बंध हमारे घर, कपड़े, भोजन, गाड़ी आदि सभी साधनों के साथ होता है। इसी प्रकार हमारे जीवन में व्यक्तियों के साथ भी जो-जो सम्बंध बनते हैं यदि उसमें हम कमियाँ और ग़लतियाँ ही देखते रहें, कहते रहें और उनकी निर्बलताओं पर ग़ौर करते रहें तो मनुष्य-मनुष्य के बीच का सम्बंध भी अत्यंत पीड़ादायी हो जाता है।

संबंध अनिवार्य है

मनुष्य सदा से एक सामाजिक प्राणी रहा है इसलिए मनुष्य का मनुष्य से सम्बंध अनिवार्य है। बाक़ी सांसारिक वस्तुओं व परिस्थितियों के साथ का उसका सम्बंध उम्र व उसकी स्वयं की रूचि-अरूचि के साथ-साथ घटता बढ़ता और बदलता रहता है परंतु मनुष्य का मनुष्य से सम्बंध बड़ा ही प्राकृतिक है। एक बालक जब पैदा होता है तो प्रकृति स्वयं उसके लिए माँ-बाप, भाई-बहन, चाचा-मामा के सम्बन्धों का ताना-बाना बुन लेती है। यह सम्बंध ही है जो मनुष्य के भीतर से उसका सर्वश्रेष्ठ या सर्वाधिक बुरा निकालने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। मनुष्य स्वयं अनेक संभावनाओं से भरा हुआ है परंतु यह मनुष्य के आस-पास के वस्तु-व्यक्ति-स्थिति के साथ के सम्बन्धों पर निर्भर करता है कि उसके भीतर से अच्छी या बुरी संभावना को उजागर करे।

संबंधों का गणित

चूँकि दो मनुष्य कभी एक जैसे नहीं होते इसलिए उनका जोड़ या तो दो से अधिक होगा या फिर दो से कम होगा। जब माँ-बाप, मित्र-मित्र या पति-पत्नी के बीच के सम्बंध का जोड़ 1+1>2 होता है तो यह सम्बंध समृद्ध और सुखपूर्ण होता है परंतु जब यह जोड़ 1+1<2 होता है तो यह सम्बंध दरिद्र और दुखपूर्ण होता है। आओ, सम्बंध के इस गणित को जीवन के व्यक्तिगत अनुभव से तालमेल मिलाते हुए अपने सम्बन्धों का संशोधन करें और उसमें सुधार करें।

जीवन में हमारे जो भी निकट सम्बंध हैं — चाहे वह माँ-बाप का संतान से हो, मित्र का मित्र से हो या पति का पत्नी से हो अथवा तो किसी वस्तु के साथ का हो परंतु यदि आपके सम्बंध का जोड़ 1+1>2 है तो जीवन में हल्कापन, आनंद, रचनात्मकता, संतोष व सेवा के भाव प्रधान होंगें और यदि आपके सम्बंध का जोड़ 1+1<2 है तो जीवन में तनाव, दुःख, नीरसता, अपूर्ति, असंतोष के भाव प्रगाढ़ होंगे।

एक और रहस्यात्मक सम्बंध 1+1=11

चूँकि मेरे जीवन की समस्त धारा अध्यात्म की है तो द्वेत जगत से ऊपर अद्वैत जगत की बात को समझे बिना, कहे बिना, लिखे बिना सम्पूर्णता का अनुभव नहीं होता। समस्त प्राकृतिक सम्बन्धों से ऊपर उठकर एक आध्यात्मिक सम्बंध भी होता है — ‘गुरु-शिष्य’ का। यह ऐसा पवित्र, ऊर्जात्मक सम्बंध है जिसमें 1+1=11 होते हैं।

जब श्री गुरु की जागृत चेतना के साथ शिष्य के समर्पण का योग होता है तब शिष्य का जीवन परमार्थ की परम संभावनाओं से भर जाता है।श्री गुरु की सन्निकटता में शिष्य स्वयं को नयी ऊर्जा और शक्ति से भरा हुआ अनुभव करता है।श्री गुरु में जब शिष्य को मात-पिता-बंधु-सखा की झलक मिलती है तब शिष्य का सम्बन्धों में हुआ असंतोष गिरता जाता है और सत्संग व साधना से श्री गुरु और ईश्वर के बीच रही समानता का भाव प्रगाढ़ होने लगता है। शिष्य के भीतर आध्यात्मिक दृष्टि उजागर होने से मनुष्य जीवन और उसकी उपयोगिता के सभी रहस्य उघड़ने लगते है। श्री गुरु के प्रत्यक्ष समागम में एक तरफ़ मनुष्य संसार भाव से ऊपर उठता है तो दूसरी तरफ़ आज्ञा-पालन से आत्म-अनुभव की आंतरिक धारा में अस्तित्व को डुबा देता है। क्योंकि यहाँ जो डूबा उसी ने जाना और जो खोया उसी ने पाया…

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